अमेठी जनपद (.प्र.) में भूमि उपयोग प्रतिरूप का एक भौगोलिक अध्ययन

 

हिमांशु मिश्रा1, प्रो. (डॉ.) इन्दू मिश्रा2

1शोध छात्र (जे.आर.एफ.) भूगोल विभाग, वी.एस.एस.डी. कॉलेज, कानपुर (.प्र.)

2प्रोफेसर, भूगोल विभाग, वी.एस.एस.डी. कॉलेज, कानपुर (.प्र.)

*Corresponding Author E-mail: himanshumishra392@gmail.com

 

ABSTRACT:

मानवीय अर्थव्यवस्थाओें में कृषि का विशेष महत्व है। जीविकोपार्जन की प्रक्रिया में आखेट, पशुपालन एवं वन्य संसाधनों पर दीर्घकाल तक निर्भरता के उपरान्त मनुष्य धीरे-धीरे कृषि विधियों को अपनाने लगा और कालान्तर में वह इन्हीं के द्वारा जीविकोपार्जन करने लगा। आज मानव के भरण-पोषण में कृषि का योगदान प्रमुख है। इसी पर आधारित अन्य व्यवसाय भी मानवीय क्रियाओं से जुड़कर उसकी आधुनिक सभ्यता के प्रतीक बन गये हैं। कृषि उपयोग के सिद्धान्त इस संदर्भ पर निर्भर है कि भूमि के निश्चित क्षेत्र से किन विधियों द्वारा अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाय और कृषि कार्य में प्रयुक्त लागत अपेक्षाकृत निम्नतम हो जिससे उत्पादन में अधिकतम लाभ सुलभ हो सके। भूमि उपयोग किसी भी क्षेत्र विशेष में विभिन्न मदों में भूमि के उपयोग की मात्रा और उसके अधिकतम उपयोग का विश्लेषण करता है। किसी भी क्षेत्र के समावेशी विकास हेतु नियोजत भूमि उपयोग की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत शोध पत्र में अध्ययन क्षेत्र अमेठी जनपद (.प्र.) में भूमि उपयोग प्रतिरूप का अध्ययन और नियोजित भूमि उपयोग के सुझावकारी विश्लेषित उपायों पर शोधपरक अध्ययन किया गया है। शोध हेतु प्राथमिक ऑकड़ों का संग्रह प्रश्नावली तथा साक्षात्कार विधि से तथा द्वितीयक स्रोत के आँकड़ों का संग्रह सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं से प्राप्त आँकड़ों के द्वारा किया गया है। शोध समावेशी और उपयोगी हो सके, इसलिए पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों और जन प्रतिक्रिया को विशेष महत्व दिया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र में लेखों और जन प्रतिक्रिया को विशेष महत्व दिया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र अध्ययन क्षेत्र जनपद अमेठी के समग्र समावेशी विकास हेतु, योजना और नीतियों के निर्माण में सहयोगी सिद्ध होगा।

 

KEYWORDS: भूमि उपयोग, प्रतिरूप, भौगोलिक, समावेशी।

 

 


INTRODUCTION:

कृषि के प्रचलन ने मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति की है। कृषि कार्य के लिए उसके यायावर जीवन में स्थायित्व आया है, उसे गृह निर्माण करना पड़ा तथा कृषि में पशुशक्ति का सहारा लेना पड़ा। इस प्रकार धीरे-धीरे सभ्यता का विकास हुआ एवं मनुष्य पशुचारण युग से वर्तमान आन्तरिक्ष युग मेें प्रवेश किया। कुछ विद्वानों के अनुसार पौधों एवं पशुओं के उगाने और पालने का कार्य कम से कम आठ हजार वर्ष .पू. से पहले प्रारम्भ हुआ। इससें पहले मानव आखेट युग था। पशुचारण और कृषि कार्य दीर्घकाल तक साथ-साथ किन्तु अव्यवस्थित रूप में चलते रहे। पहले पशुचारण प्रधान रहा, किन्तु धीरे-धीरे कृषि कार्य प्रधान होने लगा। कृषि का प्राथमिक रूप बदलता रहा और आज वह अपने पूर्ण आधुनिक, विकसित एवं व्यापारिक रूप में दिखाई पड़ता है। कृषि भूमि उपयोग की मात्रा नियोजित और समावेशी हो सके, इसके लिए आवश्यक है कि क्षेत्र विशेष में आवश्यकतानुसार नियोजन का प्रबंध किया जाय। प्रस्तुत शोध पत्र अध्ययन क्षेत्र जनपद अमेठी (.प्र.) ग्रामीण क्षेत्र से संबंध रखता है। यहाँ की 94.33 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जिनकी आजीविका का प्रमुख साधन कृषि और उस पर आधारित उद्योग है। क्षेत्र नियोजन के आभाव में भू-संसाधन का दोहन संभाव्यता के अनुसार नहीं हो पा रहा है। भूमि उपयोग प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कारकों में उच्चावच, मृदा की उर्वरता, जलवायवीय कारक जैसे-तापमान, वर्षा, आर्द्रता, तूफान, इत्यादि की भूमिका महत्वपूर्ण है। अमेठी जनपद (.प्र.) में भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन के लिए जनपद का आर्थिक पिछड़ापन के अतिरिक्त सिंचाई के संसाधनों की उपलब्धता, उर्वरकों की उपलब्धता एवं बाजार की उपलब्धता और सुगम-सुलभ परिवहन, विपणन केन्द्रों ने प्रभावित किया है।

 

शोध अध्ययन क्षेत्र:-

अमेठी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक प्रमुख जनपद है गौरीगंज अमेठी जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह जनपद अवध क्षेत्र में अयोध्या मण्डल का एक हिस्सा है। अमेठी जनपद समुद्र तल से 101 मीटर (331 फीट) की औसत ऊँचाई पर स्थित है कुल क्षेत्रफल लगभग 3063 वर्ग किलोमीटर है सतह समतल है। प्रमुख नदी गोमती जिले के केन्द्र से होकर गुजरती है। अमेठी जनपद का आक्षांश और देशांतरी विस्तार 2609’ और 81049’म् देशांतर पर स्थित है। अमेठी उत्तर प्रदेश का 72वां जिला है, जो 1 जुलाई 2010 को तत्कालीन सुल्तानपुर जिले की तीन तहसीलों अमेठी, गौरीगंज और मुसाफिरखाना और तत्कालीन रायबरेली जिले की दो तहसीलों अर्थात सलोन और तिलोई को मिलाकर बनाया गया। 2011 की जनगणना के अनुसार अमेठी जनपद की कुल जनसंख्या 1867000 है। जनपद का लिंगानुपात प्रति 1000 पुरूषों पर 983 महिलाओं का है। पुरूष तथा स्त्रियों का प्रतिशत इस प्रकार है 945000 पुरूष (50.6) और 922000 महिलाएं (49.4) है। शहरी आबादी   5.67 है। कुल साक्षरता 69.72 है जिसमें स्त्रियों की 58.28 की तुलना पुरूषों की साक्षरता 80.19 है। जनपद की 94.32 जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों मे निवास करती है, जिनकी आजीविका का मुख्य साधन कृषि और कृषि आधारित उद्योग है।

 

चित्र 1:- जनपद अमेठी की अवस्थिति, स्रोत-इंटरनेट।

 

शोध अध्ययन का उद्देश्य:-

1.     भूमि उपयोग प्रतिरूप का तुलनात्मक अध्ययन।

2.     ग्रामीण विकास हेतु नियोजित भूमि उपयोग की भूमिका का अध्ययन करना।

3.     भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले स्थानीय कारकों का अध्ययन करना।

4.     अध्ययन क्षेत्र में जन प्रतिक्रिया आधारित सुझाव निष्कर्षों को प्रस्तावित करना।

 

आँकड़ों का स्रोत तथा शोध विधि-तंत्र:-

प्रस्तुत शोध पत्र में मुख्य रूप से साक्षात्कार और प्रश्नावली विधि से संग्रहित प्राथमिक आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं से प्राप्त आँकड़ों एवं पत्र-पत्रिकाओं और पूर्ववर्ती शोध-पत्रों के प्रत्यक्ष अवलोकन और अनुभव जनित क्षेत्र की जनप्रतिक्रिया आधारित निष्कर्षों का विश्लेषण में प्रयोग किया गया है। जनपद स्तर पर प्रकाशित राष्ट्रीय सांख्यिकीय पत्रिका और जिला जनगणना हैण्डबुक, राष्ट्रीय जनगणना 2011 एवं कृषि विज्ञान केन्द्र से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग किया गया है। यह शोध पत्र व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक शोध पर आधारित है। आँकड़ों को दर्शाने और तथ्यों के विश्लेषण के लिए यस्थास्थान पर दण्डारेख, आरेख, रेखा चित्र एवं मानचित्रों का प्रयोग किया गया है।

 

परिणाम एवं परिचर्या:-

भूमि उपयोग पृथ्वी के किसी क्षेत्र का मनुष्य द्वारा उपयोग को सूचित करता है। सामान्यतः भूमि के हिस्से पर होने वाले आर्थिक क्रिया-कलापों को सूचित करते हुए उसमें वन भूमि, कृषि भूमि, परती भूमि, चारागाह भूमि इत्यादि वर्गों में विभाजित किया जाता है। भूमि उपयोग और इसमें परिवर्तन को किसी क्षेत्र के पर्यावरण और परिस्थितिकी पर अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से जुड़े मुद्दों में भूमि उपयोग संरक्षण से जुड़े मुद्दा प्रमुख है। मृदा अपरदन एवं संरक्षण, मृदा गुणवत्ता, संवर्धन, जल गुणवत्ता और उपलब्धता, वनस्पति संरक्षण, वन्य जीव आवास इत्यादि।

 

तलिका 1:- जनपद अमेठी में भूमि उपयोग का विवरण वर्ष 2010-11 तथा 2020-21 (भूमि उपयोग हे0 में)

Ø- la-

Hkwfe mi;ksx ds izdkj

2010&11 ¼{ks0gs0 esaa½

2020&21 ¼{ks0gs0 esa½

deh@o`f) ¼izfr'kr½

1

dqy izfrosfnr {ks=

307010

238201

-22.41

2

ou

1423

2114

48.55

3

d`f"k ;ksX; csdkj Hkwfe

6002

5788

-3.56

4

orZeku ijrh

22563

17873

-20.78

5

vU; ijrh

17348

196103

-7.17

6

Ålj ,oa d`f"k ds v;ksX; Hkwfe

11148

7546

-32.31

7

d`f"k ds vfrfjDr vU; mi;ksx dh Hkwfe

40639

35108

-13.61

8

pkjkxkg

2402

2086

-13.15

9

m|kuksa o`{kksa ,oa >kfM+;ksa dk {ks=Qy

8833

7011

-20.62

 

तलिका 2:- जनपद में विकासखण्डवार भूमि उपयोग (2010-11)

 

तलिका 3:- जनपद में विकासखण्डवार भूमि उपयोग (2020-21)

 

जनपद अमेठी (.प्र.) में वर्ष 2010-11 में कुल प्रतिवेदित क्षेत्र 307010 हे. था जो कि वर्ष 2020-21 में 238201 हे. हो गया। इसमें .22.41 की कमी हुई, अर्थात् कुल क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों में भूमि का उपयोग बढ़ रहा है। इसी प्रकार वन क्षेत्र में वर्ष 2010-11 में 1423 हे. था जो कि 2020-21 में बढ़कर 2114 हे. हो गया यह 48.55 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गयी जो कि सरकार की सकारात्मक वन नीति और जागरुकता कार्यक्रम के कारण संभव हुआ। कृषि योग्य बेकार भूमि वर्ष 2010-11 में 6002 हे. थी तथा 2020-21 में 5788 हे. हो गया इसमें -3.56 के वृद्धि हुई अर्थात् इन वर्षों में बंजर भूमि का विकास अमेठी जनपद में हुआ जिसके परिणाम स्वरूप बंजर भूमि में रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों आदि का प्रयोग करके उत्पादित भूमि में बदल दिया गया। इसी कारण परती भूमि मंे भी 2010-11 के दौरान .20.78 की कमी हुयी। अन्य परती में भी वर्ष 2010-11 की अपेक्षा -7.17 के नकारात्मक वृद्धि हुई अर्थात् परती भूमि अब उपजाऊ भूमि के रूप में परिवर्तित हो रही है। ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि में भी अधिग्रहण कृषि क्षेत्र आवासीय क्षेत्र के रूप में हुई। इसमें 2010-11 की अपेक्षा 2020-21 में -32.31 प्रतिशत की कमी हुई। चारागाह में भी -13.15 की कमी हुई जो यह दर्शाता है कि इसका प्रयोग मनुष्य अब अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे- कृषि, आवास, उद्योग, खेल-मैदान, परिवहन, सड़क आदि के रूप में कर रहा है। उद्यानों वृक्षों एवं झाड़ियों में भी 2010-11 से 2020-21 के दौरान .20.62 की कमी दर्ज की गयी जो अतिक्रमण और सांस्कृतिक उपयोग को दर्शाता है। इस प्रकार तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण मानव अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए गैर आवासित और वन परती भूमि का उपयोग अपने उपयोग के रूप में कर रहा है, जो कि क्षेत्र के समावेशी और रोजगारपरक विकास के लिए जरूरी भी है, क्योंकि अभी भी क्षेत्र की जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास कर रही है तथा जिनकी आजीविका का मुख्य आधार कृषि और कृषि आधारित उद्योग है। औद्योगिक गतिविधियों में विविधता आने से क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी का अंत होगा जो अनुत्पादक के रूप में कार्य करते हैं।

 

निष्कर्ष:-

अध्ययन क्षेत्र जनपद अमेठी (.प्र.) में निम्न उपायों प्रतिमानों के नियोजित प्रयोग, प्रबंधन द्वारा भूमि उपयोग को सकारात्मक रूप में उपयोग सिद्ध किया जा सकता है-

1.   अध्ययन क्षेत्र में सिंचाई बढ़ाकर, सुधरे बीजों का प्रयोग बढ़ाकर, खादों का उचित एवं संतुलित प्रयोग कर, कृषि औजारों की कुशलता बढ़ाकर तथा फसलों की उचित अनुकूलता को निर्धारित कर अधिकतमत कृषि उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

2.   फसलों के उचित प्रतिरूप में बदलाव कर उनके नियोजित संयोजन द्वारा उनको संतुलित मिश्रित प्रतिक्रिया द्वारा तथा दो फसली क्षेत्र में वृद्वि द्वारा अधिकतम कृिष उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

3.   फसलों के चयन में प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन देने वाली फसलों के चुनाव से भी अधिकतम कृषि उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

4.   निश्चित क्षेत्र में लागत मूल्य घटाकर भी कृषि उत्पादन से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

5.   आवासों से दूर कृषि कार्य मंे परिवहन लागत घटाकर तथा कृषि उत्पादन संग्रहण में परिवहन व्यय कम कर कृषि उत्पादन से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

6.   भूमि के प्रकार, परिवहन-प्रणाली श्रमिक संसाधन एवं बाजार प्रति विश्लेषणों द्वारा भी कृषि उत्पादन में अधिकतम लाभ का पक्ष एवं उसकी दिशा निर्धारित की जा सकती है।

 

अध्ययन क्षेत्र अमेठी में जनांकिकीय लाभांश की स्थिति है यहाँ की आबादी में 21-65 वर्ष की आबादी सर्वाधिक है जो उद्योग धंधों और अवसरों के उपयोग मिलने के कारण कृषि और उससे आधारित उद्योग में छिपी बेरोजगारी और अनुत्पादक रूप में कार्यरत रहते हैं, जो कि क्षेत्र के समावेशी विकास में बाधा है। इन्हें कौशल प्रशिक्षण और सरकारी योजनाओं के उचित लाभ द्वारा उत्पादक के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। भूमि उपयोग का सकारात्मक वृद्धि क्षेत्र विशेष के लिए लाभांश को स्थिति उत्पन्न करता है। यद्यपि क्षेत्र में वन भूमि का क्षेत्र बढ़ रहा है। परन्तु चिंता का विषय और नियोजन की आवश्यकता है कि नकारात्मक रूप से बढ़ रही है कि परती भूमि और ऊसर भूमि का विकास अधिकतमत लाभ के लिए प्रयोग हो जैसे- उद्योग, कृषि क्षेत्र विकास, परिवहन विकास, कौशल प्रशिक्षण केन्द्र आदि।

 

सन्दर्भ सूची:-

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5-  मौर्या, एस.डी, 2005 अधिवास भूगोल, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद (प्रयागराज) पेज नं. 70-73

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Received on 20.09.2023        Modified on 12.10.2023

Accepted on 09.11.2023        © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(4):260-264.

DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00044